मेरे नैन
गुपचुप करते वो सारी बतिया,
जगाते भी जो पूरी ही रतिया,
मौन की भाषा ही बोलते हैं,
राज दिल के सारे खोलते हैं ।
अपनों की चिंता में हो जाते बेचैन,
रात-दिन थके-हारे अश्रुपूरित नैन,
चिंतित हो बहुत कुछ सोचते हैं,
खत्म हुए “आनंद” को खोजते हैं ।
दर्द छुपाना इनको आता ही नहीं,
कशमकश अन्तर्मन की हॉं यहीं,
टुटे दिल के तारों को टटोलते हैं,
अन्तर्मन को बेहद कचोटते है ।
एकटक आस लगाएं तकते ये राह,
अश्रु छलकाते निकलती जब आह,
टुटे हुए रिश्तों के अक्स से जोड़ते हैं,
बीती यादों की तरफ़ ये मोड़ते हैं ।
ख्वाब दिखा मीलों ले जाते ये दूर,
थम न पाते सपने जब हो जाते चूर,
साथी बन दिल का दर्द बॉंटते हैं,
परछाइयों से मन को यूँ बॉंधते हैं ।
— मोनिका डागा “आनंद”