रिश्ते
ये कैसे रिश्ते हैं आजकल के
जो मुँह पर कुछ और
और असली जिंदगी में कुछ और ?
क्या मतलब है ऐसे रिश्तों का ?
बहुत याद करोगे
मेरे जाने के बाद
मेरी अनगिनत बातें
वो झगड़े वो मुलाकातें
दिल की बातें बाँटने को
वो बहकी सी रातें
वो झगड़े वो जज्बात
भर आती थीं जिनसे
पल पल में आँखें
वक्त तो बहुत होगा
अकेले में रोने का
पर कहाँ से लाओगे
वो पुरानी सौगातें
बीते हुए दिन बहुत रुलायेंगे
खामोश लम्हे जब सतायेंगे
किससे कहोगे अपना दुःख
किससे कहोगे अपनी बातें
— वर्षा वार्ष्णेय, अलीगढ़