गीतिका/ग़ज़ल

गजल

इन्तजार रहा पर वो आया नहीं,
परिंदा घोंसला लेकर उड़ा तो नहीं ।

शायद दर्द अभी हरे ही हरे लग रहे,
सुकून की दवा किसी ने पहुंचाया नहीं ।

आया चला गया रही पलकें बोझिल,
न तो आवाज दी और रुकी भी नहीं ।

यही तो सच है दुनियां की डगर में,
कौन कहां छुट जाय पता ही नहीं ।

ओझल हुई उनकी साया भी अब तो,
‘शिव’ अवाक मुड़कर देखा तक नहीं।

— शिवनन्दन सिंह

शिवनन्दन सिंह

साधुडेरा बिरसानगर जमशेदपुर झारख्णड। मो- 9279389968