मुस्कान आधार पर खिलती है
🌹मुस्कान अधर पर खिलती है🌹
संतुलन समझ गतिविधि विचार, की पूर्ण चाँदनी खिलती है |
भावों के गहन सिंधु में तब,उत्ताल तरंगे उठती है |
पाना है जीवन मोक्ष अगर,जीवन शैली को पावन कर |
पशुवत जीवन विकार तजकर,दूजे के हित में जीवन कर |
जीवन का लक्ष्य रहा परहित,बल,शक्ति सर्वदा बढ़ती है |
भावों के गहन सिंधु में तब,उत्ताल तरंगे उठती हैं |
जो मानवता धारण करता, मन उसका नहीं भटकता है |
प्रश्नों के हल मिल जाते हैं,जंजालो में न उलझता है |
पावन हो जाते हैं विचार,थिर बुद्धि द्वन्द सब हरती है |
भावों के गहन सिंधु में तब उत्ताल तरंगे उठती हैं |
है वह मानव जो मानव हित,अपना सर्वस्व लुटा देता |
अंतर्मन चुभते शूल बहुत,पर- परहित फूल बिछा देता |
यदि हो जीवन संकल्प अटल,मुस्कान अधर पर खिलती है |
भावों के गहन सिंधु में तब उत्ताल तरंगे उठती हैं |
सब अंतर द्वन्द मिटा मन के, प्रारब्ध सुहाना है रचना | हौसला,सत्य,संकल्प साथ जन- जन में सोच नई गढ़ना |
हिम्मत,साहस, दृढ़ता उर की दुर्गमता पग-पग हरती है |
भावों के गहन सिंधु में तब उत्ताल तरंगे उठती हैं |
जो लक्ष्यहीन भटका करते, हो दिशा भ्रमित घबराते हैं |
नैनों में अश्रु लिए फिरते, स्वयमेव अकेला पाते हैं |
आशा का दीप जलाने से , जड़ताएं सारी जलती है |
भावों के गहन सिंधु में तब उत्ताल तरंगे उठती हैं |
अवसाद और चिंताओं से, बढ़ते हैं रोग बिगड़ता तन |
जीवन के प्रति हो सजग मनुज, काया निर्मल निरोग तन मन |
संतुलन बनाकर चलने से, कठिनाई पीड़ा मिटती है |
भावों के गहन सिंधु में तब उत्ताल तरंगे उठती हैं |
©®मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”✍🏾
लखनऊ