कविता

विज्योति

बहुत मुद्दत के बाद
उकेरे है कुछ लफ्ज़
हृदय आघात से बचाकर
किताब-ऐ- पन्नों पर।

बहुत मुद्दत के बाद
अंकित किए हैं कुछ किस्से
हृदय स्थल से उतार
धरातल की मन:स्थली पर।

बहुत मुद्दत के बाद
छाया है सहस्रार पर
आत्मज्ञान का महाप्रकाश
मोह की प्रकाष्ठा को लांघकर।

बहुत मुद्दत के बाद
अनाहत से आया है कोई स्वर
विशुद्धा को लांघकर
अंतर्दृष्टि को सचेत कर।

— डॉ. राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233

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