गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तन की खातिर दो निवाले होना भी ज़रूरी है,
मन की खातिर अपनों का होना भी ज़रूरी है।
जानते हैं दोस्त मेरी आदतों को हारने की,
दोस्ती में दोस्त को आज़माना भी ज़रूरी है।
एकतरफ़ा प्यार अब कब तक निभायेंगे,
प्यार का अहसास दिलाना भी ज़रूरी है।
है कोई बेवफा तो उसकी फ़ितरत,
अपनी वफ़ा का बताना भी ज़रूरी है।
कौन जाने किसके दिल में क्या छिपा,
मेरे दिल में तुम ही हो, दिखाना भी ज़रूरी है।

— डॉ अ कीर्तिवर्द्धन