गीत
विद्यालय का टूर गया था।
कई सौ मीलों दूर गया था।
बैठे जा कर झील किनारे।
देखे सुन्दर अजब नज़ारे।
बागों की हरियाली देखी।
चारों ओर खुशहाली देखी।
हंस हंस कर थे वक़्त गुज़ारे।
बैठे जा कर झील किनारे।
खु़शबूयों की हस्ती देखी।
चारों ओर ही मस्ती देखी।
फूल खिले थे प्यारे-प्यारे।
बैठे जा कर झील किनारे।
रात्रि पानी झिलमिल जगता।
नांव नीचे कितना फबता।
पानी भीतर चांद सितारे।
बैठे जा कर झील किनारे।
अच्छे लगते पक्षी तरते।
जैसे हिरण कुलांचे भरते।
कुदरत लाख स्वर्ग उतारे।
बैठे जा कर झील किनारे।
क्रूज़ कैसे तरता जाए।
जैसे कोई लय में गए।
लेकर लम्बे नीर सहारे।
बैठे जा कर झील किनारे।
बालम लहरें शोर मचाएं।
फुदक-फुदक कर आएं-जाएं।
फूहार पड़े तन-मन ठारे।
बैठे जा कर झील किनारे।
— बलविन्दर बालम