कविता

रक्तिम तूलिका

आज तूलिका है स्तब्ध
कह रही हाय!राम धत्त।

आज स्याह रंग भी
रक्त है उगल रही,
पूछती है सभी से
क्या अब भी वही सही?

तुम अब भी नहीं उठे
तूलिका हो जाएगी मौन,
बिखेर देगी रंग लाल
फिर ये पूछेगी प्रथम
तू बता कि है कौन ?

लाल किसका है तू
और किसका है सिंदूर
है अगर महावर चूड़ी
फिर जा तू अब उनसे दूर।

जा रहे सुनी कलाई
कौन अब किसका भाई
छाती पिट बिलख रही
वो है किसकी माई?

अरे किसकी कोख तू पला
किस अभागन का तू लला।
या वो पियूष के बदले
तुझको रही थी खून पिला?

उठो उठो हे मेरे लाल
लगाती चंदन तेरे भाल
आतंक और आतंकियों का
करो सर्वनाश निकालो भाल।

है तुझे मेरी कसम
अब चलेगी तभी कलम
जब लोगे प्रतिशोध तुम
और उनका सर कलम।
वरना ये तूलिका छेरेगी
सिर्फ लाल रंग…

— सविता सिंह मीरा

*सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]

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