कविता

बहुत हुआ अब

आस्तीन के साँप हैं ये इनका फन कुचलना होगा
गैर को तो पहचानते हैं सब अपनों में से इन्हें ढूंढना होगा

कह रहें जुबां से जो भाई भाई उनके भीतर टटोलना होगा
धर्म पूछकर चलाते हैं गोली उन्हें धर्म के सही मायने बताना होगा

अपने राजाओं ने दुध पिला पिला के दशकों से जिन्हें पाला हैं
उन्हें अहिंसा की डगर पर चलना सीखना होगा

जिस देश का खा पी कर पले बढ़े उस देश से वफादारी करना सिखाना होगा
घर से ज्यादा पड़ोसी से प्रीत करने की रीति को भूलना सिखाना होगा

कुछ शर्म ओ हया बच गईं हैं अगर देश के प्रति फ़र्ज़ निभाना होगा
बहुत सह चुके हैं हम अब हमारे प्रतिकार की अगन में जलना होगा

— जयश्री बिर्मि

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।

Leave a Reply