लघुकथा

धरती मां की खिली मुस्कान!

“बोतल के ठंडे पानी से तुम्हारी तपन तो कुछ हद तक शांत हो गई, पर मेरी भयंकर तपन का क्या होगा?” तपन को गर्मी की तपन से अस्थायी निजात पाते देख धरती मां की व्यथा मुखर हो गई.
“तुम तो धरती मां हो, धैर्य की देवी हो, असीमित धीरज धारण कर सकती हो!”
“यही तो तुम लोगों की चालाकी है, धैर्य की देवी कहकर मुझे भी भ्रमित कर रहे हो और खुद भी भ्रमित हो रहे हो. तुम न तो मेरे असीमित धैर्य का आकलन कर सकते हो और न ही मेरी तपन को कम करने के उपाय कर रहे हो. मेरे भी अधर सूखते हैं, मेरी भी आंखें जलती हैं!”
“सच कह रही हो धरती मां,
हम ही वृक्षों को काटते, सताते तुझे धरा,
फिर भी तेरी गोद में ही हम कर पाते क्रीड़ा!”
तपन ने कहना जारी रखा- “अब हम एक मुहिम चलाएंगे ताकि पुराने वृक्षों को काटने से रोका जा सके और नए वृक्षों को लगाने के अनेक अवसरों का आयोजन किया जा सके. इसके साथ ही कारों का उपयोग कम करने, प्लास्टिक और पॉलिथिन का उपयोग न करने का अभियान भी चलाएंगे, ताकि तुम्हारी तपन भी कुछ हद तक तो शांत हो सके!”
आश्वासन में दृढ़ संकल्प की झलक से ही भयंकर ताप से तपती धरती मां की मुस्कान खिल गई थी.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244