विरहानल तन-मन झुलसाती
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।
रीत गए आँसू नयनों के, विरहानल तन- मन झुलसाती ।।
छद्म वेश में घुस आतंकी, लगा पूछने धर्म बताओ ।
हिन्दू कहते ही गोली क्यों, दागी उसने यह समझाओ ।।
आतंकी नागों ने हमला, किया भले ही अकस्मात है,
सदा साथ चलने का वादा, तोड़ न सकते ये आघाती ।
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।।
रह-रहकर यह पूछ रहा दिल, क्या जीवन भर होगा रोना ।
हृदय प्रश्न करता यह खुद से, जुर्म हुआ क्या हिन्दू होना ।।
क्या कसूर था प्राणनाथ का, बेरहमी से मारा उनको,
सहमी सहमी बैठी अबला, कैसे समझे अब यह थाती।
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।।
किया भाग्य ने आज विलग है, बैठी हूँ पर पास तूम्हारें ।
बरस रहें नयनों से मोती, भीगी पलकें तुम्हें निहारें ।।
ईश्वर के घर देर भले हो, कहते पर अंधेर नहीं है,
सजा मिलेगी आतंकी को, पुनः पुनः दिल को समझाती ।
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।।
होगा नहीं पुनः प्रभात क्या, लिपट तिरंगे में तुम जाओ ।
खुशी खुशी मैं करूँ विदाई, भारत माँ का मान बढ़ाओ ।।
श्वास थामकर करूँ प्रतीक्षा,टूट न पाये हिम्मत मेरी,
पुनः जन्म ले आओगे फिर, मन में यह विश्वास जगाती।
दुख से प्रीत लगी है ऐसी, पलभर दूर नहीं रह पाती ।।
— लक्ष्मण लड़ीवाला ‘रामानुज’