खानदानी किताब
“दादू आप मुझे कभी जादुई संसार में नहीं ले चले, ले चलो न दादू!” छोटा-सा नितिन मचल गया.
दादू ने कुछ सोचते हुए कहा “चलो.” वे उसे ऊपर वाली परछती पर ले गए.
“लो आ गए जादुई संसार में!” दादू ने कहा.
“यहाँ तो कुछ भी नहीं है!”
“है कैसे नहीं!” दादू ने एक बक्सा खोलते हुए उसमें से एक किताब निकाली.
“इस किताब को खोलो.”
“वाह दादू! यह तो सचमुच जादुई संसार है! उड़ने वाली बिल्ली, नाचने वाले केकड़े, झूलते हुए चमगादड़, परियां, गुड्डे-गुड़िया जैसे बच्चे, और भी न जाने क्या-क्या!”
“इन सबकी कहानियां भी हैं इसमें.” दादू ने उसकी उत्सुकता बढ़ाते हुए कहा.
“दादू, पर ये किताब आप लाए किसके लिए थे?”
“तुम्हारे पापा जब तुम्हारे जितने थे, वे भी जादुई संसार में जाना चाहते थे, उनके लिए!”
तब तो यह खानदानी किताब हो गई!” नितिन ने चहकते हुए किताब अपनी बगल में दबा ली.
— लीला तिवानी