धर्म रोपते हुए चलो
धर्म रोपते हुए चलो
माना अनेक बाधाएं हैं चट्टान तोड़ते बढे चलो।
आतंकी सर जितने आएं,गर्दन मरोड़ते बढे चलो।
जिन आतंकी मस्तिष्को में ख़ूनी विचार की लहरे हैं,
जिनके हृद में है प्रीत नहीं नफरत अंगार दहकते हैं,
ऐसे विक्रत मस्तिष्क हृदय हर हाल फोड़ते बढे चलो।
आतंकी सर जितने आएं, गर्दनमरोड़ते बढे चलो।
अरुणोदय सुंदर लाने को संघर्ष बहुत करना होगा,
दहशत फैलाने वालों का, मिल अंत हमें करना होगा।
आतंकी बहती धारा का जांबाजो रुख मोड़ते चलो।
आतंकी सर जितने आएं,गर्दन मरोड़ते बढे चलो।
हम धीर वीर गंभीर बहुत जब करने पर आजाते हैं ।
दुश्मन की छाती पर चढ़ कर करनी का भोज चखाते हैं ।
आतंकी दुर्जन धूर्त हृदय खम ठोंक ठेलते चढ़े चलो।
आतंकी सर जितने आएं,गर्दन मरोड़ते बढे चलो।
गीता को आत्मसात करके कर्तव्य कर्मपथ बढ़ना है।
करके प्रतिकार न्याय करना अन्याय नहींअब सहना है।
जो हैंअधर्म में लिप्त बहुत अब अग्नि झोंकते हुए चलो।
आतंकी सर जितने आएं गर्दन मरोड़ते हुए चलो।
फैले दानव विकार बन कर जग की पावनता भृष्ट करें,
सारथी कृष्ण होंगे तब ही जब दानवता का नष्ट करे,
न्यायार्थ धार कर शस्त्र मनुज अब धर्म रोपते हुए चलो। आतंकी सर जितने आएं,गर्दन मरोड़ते बढे चलो।
©®मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”
लखनऊ