कविता

नहीं किसी को छलेंगे

जिनको जो कहना है कहने दीजिये,
उन्हें अपनी घमंड में रहने दीजिए,
अपनी राहों में कैसे चलना है हम जानते हैं,
बेफिक्री वाली मजबूत कदमों के शौकीन हैं
हीरों से जड़ित खड़ाऊ कोई पहना दे
तो भी किसी का आदेश हम नहीं मानते हैं,
ऊंची नीची पहाड़ी में ऊंट न चलाओ,
हुनर देखना है तो रेत में दौड़ाओ,
कांच में भागने का दम सांप कहां से लाए,
खेत की मेढ़ में कोई न छेड़ पाए,
जगह परिस्थिति अनुसार सबका महत्व है,
किसी का हुनर उनका अपना ही स्वत्व है,
केकड़े हैं जो पत्थर की ओर मुड़ जाएंगे,
जागरूकता की राह में सदा हमें पाओगे,
सफल हुए तो अपना नीला आकाश होगा,
मंजिल ले जाने को आदर्शों का प्रकाश होगा,
वे अपनी चाल चले हम अपनी चाल चलेंगे,
वो डूब सकता है डगर की चकाचौंध में
मंजिल दिखलाने वाले नहीं किसी को छलेंगे।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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