गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जनम दिन पे मां आई मुझको बुलाने,
मुझे मेरे बचपन के सामां दिखाने।

मुझे मां चली फिर नज़र से बचाने,
मुझे काला टीका लगी है लगाने।

कि अब मैं जवां हूं मगर आज भी मां,
मुझे छूने के ढूंडती है बहाने।

मगर वालिदा हमको देना ख़ुदाया,
कि तू हमको चाहे न देना ख़ज़ाने।

अगर मैं कभी देर से घर पेआया ,
तो मां दौड़ी मुझको गले से लगाने।

फ़क़त हाल ही मैंने मां का जो पूछा,
वो बीमारी में भी लगी मुस्कुराने।

यही मेरा बेटा है कहकर मुझे मां,
सहेली को अपनी लगी है दिखाने।

मेरी आंख में एक आंसू जो देखा,
तो मां मेरी सागर लगी है बहाने।

अगर मैंने हल्का भी बोझा उठाया,
तो मां मेरी दौड़ी है कांधा लगाने।

मैं मुफ़लिस हूं बच्चों की मुजरिम हूं कहकर,
कि मां ख़ुद को लगती है अक्सर रुलाने।

— अरुण शर्मा साहिबाबादी

अरुण शर्मा साहिबाबादी

नाम-अरुण कुमार शर्मा क़लमी नाम-अरुण शर्मा साहिबाबादी पिता -जगदीश दत्त शर्मा शिक्षा-एम ए उर्दू ,मुअल्लिम उर्दू ,बीटीसी उर्दू। जीविका उपार्जन- सरकारी शिक्षक पता-एफ़ 73, पहली मंज़िल,पटेल नगर-3, ग़ाज़ियाबाद। मोबाइल-9311281968 पुस्तकें-खोली, झुग्गी,पुल के नीचे एक पत्ती अभी हरी सी है, मुनफ़रिद,इजतिहाद.मुफ़ीक़ ( सभी कविता संग्रह) पुरुस्कार-उर्दूकी कई संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत। कई सम्मान समारोह आयोजित हुए हैं।