मुक्तक
उचित समय पर सही चोट, निर्णायक फल देती है,
तपे हुए लोहे पर चोट, उसका आकार बदल देती है।
नाम पाक का मिट जायेगा, थोड़ी धीर रखनी होगी,
सेना की रणनीति देखो, दुश्मन की रूह बदल देती है।
संयम का फल मीठा होता, दुश्मन को घबराने दो,
थककर चूर जरा होते ही, जाल में दुश्मन आने दो।
जब तक भीतर के दुश्मन की, ढूँढ ढूँढ पहचान करो,
भेड़ खाल में घर के भीतर, उनको भी निपटाने दो।
अब से पहले किसे पता था, कितने कौन द्रोही हैं,
अपनी बेटी दुश्मन घर ब्याही, बनकर राजद्रोही हैं।
रोटी बेटी के रिश्ते से, दुश्मन का घर आना जाना,
बच्चे भी दोनों मुल्कों के, कुछ भारत में विद्रोही हैं।
विवाह किया दुश्मन से लेकिन, मैके में रहती आयी,
भारत धरती पर पलती, भारत की नागरिकता पायी।
पाक में शौहर उसके बच्चे, सब यहीं टुकड़ों पे पलते,
ग़द्दारी भी इसी मुल्क से, जुल्म यहाँ पर कहती आयी।
— डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन