निकलो बाहर
अंधेरे में हो
थोड़े उजाले में निकलो
तो सच्चाई जान पाओगे
पकड़ों निज बैशाखी
चलो धीरे-धीरे
मुझे पता है, तुम अपाहिज हो
कुएँ के मेढ़क सा बंद कमरे से
क्या देख पाओगे?
चारदीवारी,किवाड़,गवाक्ष, छप्पर
और वो जो तुम्हे टेलीविजन में
दिखाया जाएगा
उसमें चलता है नरेटिव
सत्ता की वाहवाही का
जिससे उसकी साख बची रहे
किंतु तुम्हे सच जानना है तो
निकलना होगा,गली में
बैठना होगा चौराहे पर
जो ज्ञान और अनुभव वहाँ मिलेगा
वह यथार्थ होगा
भरमाने वाला नही।।
— चन्द्रकांत खुंटे ‘क्रांति’