बुराई मुझे स्वीकार नहीं
तुम्हारे घृणित अहंकारों से
ऊपर नहीं उठना चाहता हूं,
अवसर आए तो भी मैं
तुम्हारे ऊपर नहीं मूतना चाहता हूं,
तुम्हारे मन मस्तिष्क को
कब्जाना नहीं चाहता हूं,
इंसानियत को भूल सरेआम
तुझे झुकाना नहीं चाहता हूं,
है जो मेरे पास पानी का मटका,
तुझे मिल रहा हो गर प्यास का झटका,
दिल से उस पानी को तुझ पर वारूंगा,
तुम्हारी तरह किसी को छूने से नहीं मारूंगा,
जिस तरह तुम डरते हो मेरी परछाई से,
घृणा करते हो मुझसे न कि मेरी बुराई से,
मेरे समाज की अबलाओं को देखकर
जिस तरह भर जाते हो कामुकता से,
सिर्फ जातिय घमंड के कारण
कांड कर जाते हो प्रमुखता से,
ऐसा मेरा कोई इरादा नहीं है,
मानवता को मानता हूं
भले किसी से वादा नहीं है,
तुम्हारे पाखंड के विरोध में
पाखंड खड़ा करने का
मेरा कोई विचार नहीं है,
क्योंकि किसी भी स्तर का पाखंड
मुझे कतई स्वीकार नहीं है।
— राजेन्द्र लाहिरी