गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल 

प्लेटफार्म पर एक झलक दिखला कर चली गई
जैसे कोई उदासी हाथ हिला कर चली गई।

कुछ चहका कुछ महका मन में छलक उठे आंसू
कोई पीड़ा भीतर लहर उठा कर चली गई।

हिलता रहा रूमाल हवा में भीगा – भीगा सा
वह ज्यों सुधियों के परचम फहरा कर चली गई।

मिलना और बिछड़ना सिक्के के दो पहलू हैं
कोई कोयल सुबह – सुबह यह गाकर चली गई।

पल – भर की भी पुलक हृदय में रस भर देती है
एक ज़रा – सी पुलक यही बतला कर चली गई।

— डॉ. ओम निश्चल

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