कविता

खुशी खुशी कह दो

हां सोच समझकर
होशोहवास में रह
कर रहा हूं गलती,
मैं नहीं कहूंगा कि नादान हूं,
मुंह बांये खड़ी परिस्थितियों से
हद दर्जे तक परेशान हूं,
ये मेरा नाकारापन ही है
जो कुछ भी नहीं दे पाया
खुशियों के नाम पर,
सोचने का समय नहीं मिला
हो सकने वाले अंजाम पर,
मगर खुशकिस्मत हूं
सबका भरपूर साथ मिला,
मानता हूं सबके त्याग को
जो चाहकर भी नहीं किये गिला,
मगर क्या करूं मजबूर हूं,
परिवार को दे सकने वाले
खुशियों से महरूम हूं,
शायद मैं अभागा नहीं हूं,
कसम से जिम्मेदारियों से भागा नहीं हूं,
लेकिन वक्त को
व्यवस्थित कर नहीं पा रहा हूं,
कब कौन निकल जाए इस जहां से
बात दिमाग में धर नहीं पा रहा हूं,
मैं करता नहीं अत्यधिक आत्मविश्वास,
मुझे भी नहीं है लंबे जीवन की आस,
गलतियां सुधारने के लिए,
नाकामी स्वीकारने के लिए,
हूं तैयार,
है हर शर्त मुझे स्वीकार,
मैंने हमेशा चाहा कि
जीवन यापन की कला
न सीखने पर किसी को नहीं सह दो,
मेरे मरने के लिए काफी है
तुम मेरे कोई नहीं हो
एक बार इत्मीनान से कह दो।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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