कविता

प्रकृति की छटा निराली

प्रकृति तेरी छटा है अजब निराली
कहीं अंबर पे दिखता मेघा काली
पूरब में सूरज की रूप है लाली
ऋतुओं की भरी है पृथ्वी पे भंडार
कहीं ठंड का आलम कहीं धूप अंगार
कहीं वर्षा की बूंद की झड़ती फुहार
कहीं प्रकृति की सज गई है श्रृंगार
कहीं कीचड़ कहीं सहरा का हार
कहीं सूखा खेत कहीं रेगिस्तान पहाड़
तेरे सीने में नदियाँ  सागर संसार
कहीं प्रकाश है कहीं छद्म अंधकार
तरह तरह के गोद में है जीव प्राणी
खान पान की अपनी है मनमानी
कहीं गीदड़ कहीं  शेर की दहाड़
कहीं मांसाहारी जीव कहीं शाकाहार
हिंसक जीव कहीं झुंड में वनराज
कहीं शांति का लगा है  दरबार
कहीं आतंकवाद से भरा है प्यार
कहीं आतंक से परेशान नर नार
कहीं कश्मीर है यहाँ स्वर्ग का लगे द्वार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088

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