मृत्यु! तू भूल कर रही है
ऐ मृत्यु! तू इतना सकुचाती क्यों है?
पास नहीं आती क्यों है?
क्या गिला शिकवा शिकायत है हमसे?
जो रुठी हुई दूर रहती है हमसे।
आ मेरे पास आ, मेरे सारे संदेह मिटा,
जब मैं तुझसे डरता नहीं हूँ
तब तू इतना घबराती क्यों है?
दूर बैठी निहारती है सूनी आँखों से
आखिर तुझे इतना डर है किससे?
हंसते मुस्कुराते हुए तू आ,
अपनी सुरीली तान में एक मधुर गीत तो गा,
मन की हर दुविधा को तू कर अलविदा।
कोई और बात है तो वो भी बता
बीती बातों को अब तू कर अलविदा,
अब और असहज न कर मुझे
खुशी खुशी तेरा स्वागत करुंगा
तेरे सम्मान में एक बड़ा आयोजन करवा दूँगा,
तेरे वजूद का नया इतिहास लिख दूँगा।
बस! बहुत हो चुका आँख-मिचौली का खेल
अब तू आ, मैं तुझसे करुँगा मेल,
शर्माना, इतराना और हठधर्मी छोड़
हताशा-निराशा, असमंजस के भँवरजाल से निकल
और हँसते मुस्कुराते मेरे पास आ,
दोनों मिलकर खूब हुड़दंग करेंगे,
धरती, आकाश-पाताल, यमलोक तक सबको दंग करेंगे,
तू डर, दहशत नहीं, सच्ची दोस्त है
जो बिना भेदभाव हर प्राणी से अपनी दोस्ती निभाती है,
लाख शिकायतें हो तुझे उनसे
फिर भी तू सबसे दोस्ती निभाती तो है,
पर अब तो मुझे भी तुझसे शिकायत है,
मेरी शालीनता, सहजता, मनुहार का
तू अब तक उपहास क्यों कर रही है?
कब से तेरी राह देख रहा हूँ मैं,
और तू बड़ा नखरे दिखा रही है,
ऐसा तो नहीं तू हमसे राजनीति कर रही है
या खुद ही राजनीति के खेल में उलझ गई है,
या मुझे बहुत सीधा-साधा सरल समझ रही है,
यदि सचमुच ऐसा है, तो तू बड़ी भूलकर रही है,
और मेरे पास आने से कतरा रही है।