आओ बाँसुरी…!
हमसे क्यों दूर हो आओ बाँसुरी,
अभी होंठों की प्यास हैं अधूरी।
तुम्हारे बगैर हरेक गीत अधूरा है,
गीत नहीं लिखा फिर भी पूरा हैं।
छूने दो सुर-ताल, लय साथ होंगे,
कृष्ण, राधा के आस-पास होंगे।
हमसे क्यों दूर हो आओ बाँसुरी,
अभी होंठों की प्यास हैं अधूरी।
मुझे आज कोई तो गीत गाना है,
सात सुरों से महफ़िल सजाना है।
ऐसे न रूठा करो-बोलो मनाना है,
कन्हैया भी तो तुम्हारा दीवाना है।
— संजय एम तराणेकर