कविता

चरित्र ही ऐसा है

हां वो बहुत ही गरीब है,
पर खुद ही चुना खुद का नसीब है,
वो हमेशा से गरीब था,है,रहेगा,
इसके लिए खुद जिम्मेदार है
किसी से क्या कुछ कहेगा,
वो नहीं चाहता हाथ पैर चलाना,
मंजूर नहीं मेहनत से कमाना,
उसे अच्छी तरह से आता है मुंह चलाना,
मतलब नहीं अपना फर्ज निभाना,
वो सीखा हुआ है बेवकूफ बनाना,
जानता है मस्तिष्क कही और ले जाना,
बहुत घमंड है अपने आप पर,
धन बना सकता औरों के संताप पर,
अब तो भीख भी धड़ल्ले से मांग लेता है,
बदले में मनभावन दुआएं देता है,
उसका कुछ नहीं हो सकता क्योंकि
वो बिल्कुल नहीं बदलेगा,
उनका चरित्र ही ऐसा है
न बदलेगा न मचलेगा।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554