गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइए।
दिल की किताब हर किसी को मत पढ़ाइए।।

बदनाम हो न जाएं कहीं आप इस तरह।
अपने ही हाथों खुद को न विष है पिलाइए।।

आ जाइए करीब मेरे गुफ्तगूं करूं।
दिल की लगी मेरी है उसे तो बुझाइए।।

मैं बेकरार हूं मेरी ये इल्तिज़ा सुनें।
मुझको यूं बारहा न सनम आजमाइए।।

यूं दूर से ही आप मुझे देख लेते हैं।
पैगाम पास आके जरा कह तो जाइए।।

— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

पता- 15a राधापुरम् गूबा गार्डन कल्याणपुर कानपुर

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