ग़ज़ल
मेरा नहीं तो दिल का कहा मान जाइए।
दिल की किताब हर किसी को मत पढ़ाइए।।
बदनाम हो न जाएं कहीं आप इस तरह।
अपने ही हाथों खुद को न विष है पिलाइए।।
आ जाइए करीब मेरे गुफ्तगूं करूं।
दिल की लगी मेरी है उसे तो बुझाइए।।
मैं बेकरार हूं मेरी ये इल्तिज़ा सुनें।
मुझको यूं बारहा न सनम आजमाइए।।
यूं दूर से ही आप मुझे देख लेते हैं।
पैगाम पास आके जरा कह तो जाइए।।
— प्रीती श्रीवास्तव