ज्यादा शरीफ बनने का नइ
अपने रस्ते पे आने का,
अपने रस्ते पे जाने का,
मन किया तो कभी कभी
शान पट्टी भी दिखाने का,
इस दुनिया में शरीफों का जीना
अक्सर होता रहता है मुहाल,
आजू बाजू खड़ी रहती है
बिना बुलाया हुआ जंजाल,
अक्खा दुनिया में पड़े हुए हैं कई लुक्खे
उनसे भी यारी दोस्ती निभाने का,
मन किया तो कभी कभी
शान पट्टी भी दिखाने का,
अफसर भी अब खुद को समझने लगा है खुदा,
काम नहीं है नेताओं के कामों से ज्यादा जुदा,
ये होते ही नहीं कभी अपने बाप के,
गुनाहगार साबित कर देते हैं औरों को
खुद के किये हुए बड़े से बड़े पाप के,
रिश्वत लेंगे भी अपने ओहदे की नाप के,
कभी नहीं गिरेंगे इनके आंखों से आंसू
दो बूंद भी सच्चे पश्चाताप के,
तो क्या सोच रहा है भई,
अपुन की बात मान
ज्यादा शरीफ बनने का नइ।
— राजेन्द्र लाहिरी