गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अँधेरी रात और जंगल से .गुज़रना मेरा
कोई इंसान जो मिल जाये तो डरना मेरा

कभी चढ़ाइयाँ चढ़ना ये काली घाटी की
कभी तलहटी में चुपचाप उतरना मेरा

तुम्हारी सोच के .मानी बदल रहे हैं सभी
ज़िंदा रहने को समझते हो तुम मरना मेरा

मेरी आँखों में जो पानी है मेरी पूँजी है
इसी पूँजी की बदौलत है निखरना मेरा

रात कट जायेगी मेरी तो सफ़र में लेकिन
तुम को भर देगा ये ताज्जुब से उबरना मेरा

— कैलाश मनहर

कैलाश मनहर

जन्म:- 02अप्रेल1954 शिक्षा:- एम.ए.(बी.एड) शिक्षा विभाग राजस्थान, विद्यालय शिक्षक के रूप में चालीस वर्ष कार्य करने के उपरांत सेवानिवृत्त। (1) कविता की सहयात्रा में (2) सूखी नदी (3) उदास आँखों में उम्मीद (4) अवसाद पक्ष (5) हर्फ़ दर हर्फ़ (6) अरे भानगढ़़ तथा अन्य कवितायें (7) मुरारी माहात्म्य एवं (8) मध्यरात्रि प्रलाप (सभी कविता संग्रह) तथा "मेरे सहचर : मेरे मित्र" (संस्मरणात्मक रेखाचित्र)प्रकाशित। प्रगतिशील लेखक संघ, राजस्थान द्वारा कन्हैया लाल सेठिया जन्म शताब्दी सम्मान, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, श्री डूँगरगढ़ द्वारा डॉ.नन्द लाल महर्षि सम्मान एवं कथा संस्था जोधपुर का नन्द चतुर्वेदी कविता सम्मान प्राप्त। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से भी प्रसारण । देश के अधिकतर पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित पता:- स्वामी मुहल्ला, मनोहरपुर, जयपुर (राजस्थान) मोबा.9460757408 ईमेल[email protected]

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