कविता

धरती

धरती सी विनम्रता
और सहनशीलता
और किसी में
नहीं पाई जाती
सहनशील मानव
रहते जग में
वे ही सच्चे
ज्ञानी कहलाते
जो आँधी तूफान
दुख घोर निराशा
और में भी
न घबराने
वाले होते
सागर की लहरें
सब कुछ सहती
फिर भी शांत
बनी रहती
धरती सारे जगत
का भार उठाकर
हर मौसम में
सुख देती आदमी
अपने स्वार्थ के लिए
इस पर क्या-क्या
न सितम ढाता है
इसे खोदता है
इस पर गगनचुंबी
अट्टालिकाओं का
भार लादता है
कभी आग जलाता है
तो कभी कुछ और
जुल्म ढाता है
पर यह धरती
चुपचाप सब
कुछ सहन कर लेती
है धरती सी विनम्रता
और सहनशीलता
और किसी में नहीं
पाई जाती धरती
जग में प्यार लुटाती
सहनशीलता वही
गुण है जो एक
इंसान को फरिश्ता
बनाता जो भी व्यक्ति
अपनाए जीवन में
पथिक सच्चा कहलाता
सच्चाई और सहनशीलता
का स्वाद ऐसा लगता है
वह तो इन्सान नहीं
है इस धरती पर
एक अपवाद हैं
पृथ्वी को संसार में
समझा जाता है
सर्वाधिक सहनशील
और विनम्र हैं ।

— प्रदीप छाजेड़

प्रदीप छाजेड़

छाजेड़ सदन गणेश डूँगरी गेट के पास सबलपुर रोड़ पोस्ट - बोरावड़ जिला - नागौर राज्य - राजस्थान पिन -341502 नम्बर -9993876631