गीत/नवगीत

शब्द को ज्वाला बना कवि

शब्द को ज्वाला बना कवि, गीत को अंगार कर।
राष्ट्र के सब द्रोहियों पर लेखनी से वार कर।।

शत्रु सीमा पार भी हैं, शत्रु हैं इस पार भी।
बोल जिनके हैं कटारी, तीर भी, तलवार भी।
है जिन्हें संदेह अपने सैनिकों के शौर्य पर,
उन कृतघ्नों के हृदय में आज भय-संचार कर।।

शत्रु के हमदर्द हैं जो, आदतन लाचार हैं।
देशहित के हर कदम की राह में दीवार हैं।
इन सभी के दोगलेपन के मुखौटे नोचकर,
राष्ट्र-निष्ठा का नया वातावरण तैयार कर।।

विश्व में आतंक का पर्याय बनकर डोलती।
मज़हबी तक़रीर से परिवेश में विष घोलती।
क़त्ल करती है बिना सोचे हुए निर्दोष को,
उस घृणा की मानसिकता का प्रबल प्रतिकार कर।।

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)

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