सिंदूर का शौर्य
कायर तेरी करतूतों का, दंड तो तुझे मिलेगा।
अपनों को मरते देख ले, ऐसे ही तू मरेगा।।
वर्ष आठ से पच्चीस तक, साल बीत गए सतरा।
काल सर पे बोल उठा, तेरी मौत का खतरा।।
तेरी घिनौनी घातों ने, हमको शूल चुभोये हैं।
तेरे कायराना हमलो ने,हमने अपने खोए हैं।।
सूनी हो गई मां की गोद, बूढ़े बाप की छीन गई लाठी।
भुज भाई की तोड़ने वाले, यह है भारत की माटी।।
घर का चिराग बुझा दिया टूटी बहन की राखी।
सिंदूर सुहागन का उजाड़ा कुछ ना छोड़ बाकी।।
हेमंत करकरे की बलिदान को, कैसे भूलेगी कविता।
रवि पाल की शौर्य गाथा, गर्व से गाये गीता।।
हिमांशी ने खुद ही देखी, उजड़ती अपनी मांग सिंदूर।
आतंकियों पर टूट पड़े हैं, अब कराची नहीं है दूर।।
शहादत का बदला लेने, कूद पड़ी है रणचंडी।
सब देखेंगे मौत का तांडव, लाहौर हो या रावलपिंडी।।
दफन कब्र में हो आतंकी, शौर्य सिंदूर का ये प्रण होगा।
ना समझाईश नहीं चेतावनी, अब तो भीषण रण होगा।।
— दिनेश बारोठ दिनेश