डिफॉल्ट

चंडी रूप

बुरा वक्त कभी किसी पर न आये।

मैना साधारण परिवार की साधारण सी लडकी थी। जैसे ही सयानी हुई, बाबा राजाराम जी अपने दोस्त के लाडले बेटे सागर के साथ उसका गठबंधन करवा दिया और जिम्मेदारी से मुक्त हो गये। सागर की तहकीकात करना जरूरी नहीं लगा। शुरू शुरू में समय पर घर आता, मीठा बोलता, उसका ध्यान रखता। उसके आगोश में वह सारे जहां का सुख पाती। लेकिन धीरे धीरे असली रंग रूप दिखा दिया उसने। जुआ खेलना, दोस्तों संग मौज मस्ती करना, दारू पीकर नशे में धुत घर लौटना.. कभी कभी पीकर आता तब बेकाबू सा मारपीट भी करने लगता। कभी कभी पियक्कड, नशेडी मित्र भी छोटे से घर में आकर बैठ जाते।

आज जब उसके मित्र ने उसके साथ घिनौनी हरकत की कोशिश की तो वह आगबबूला हो गयी।

नशे में धुत सागर बेहोश सा पडा था। और दोनों मित्र उसपर जबरदस्ती करना चाह रहे थे। पलभर में चंडी रूप धार लिया उसने। बाजू में पडे ‘कोयते’ से एक के सिर पर जोरदार वार कर दिया। खून की छींटे देख दुसरे मित्र का नशा उतर गया और वह उससे बचने के लिए तुरंत भाग गया। 

और मैना के बारे में उल्टी सीधी बातें करने लगा। बेशर्मी की हद हो गयी, जब वह सब से कहने लगा, मैं तो अपने साथी को सही-सलामत घर छोडने गया था। मैना ने ही उसे उकसाया। आसपास के लोग तरह तरह की उल्टी सीधी बातें करने लगे। शर्म की मारी वह घर में ही बैठी रहती। रो रोकर बुरा हाल था उसका। माँ मिलने आयी तो वह फफक फटकार रो पडी।

” माँ, मैं ने तो सिर्फ अपना बचाव किया। लोग कैसी कैसी मनगढंत बातें कर रहे हैं।”

” बेटी, धीरज धर। लोगों को काम ही क्या है। तू रोयेगी, वे रुलायेंगे ही। शांत हो जा।”

जब से उसने सबको फटकारा है, सबके मुँह बंद हो गये है। आत्मविश्वास के साथ अब वह बाहर निकलती है, अपना काम करती है। 

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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