जेब खाली है…
चिलचिलाती धूप की तपन, जलन असह्य है,
सजाये हैं फिर भी दिल ने सपने अनगिन हैं।।
रात दिन तपता हूं मैं परिश्रम की भट्टी में,
भरपेट भोजन, शुद्ध हवा पानी छत की आस है।।
रसोईघर में धुंए से आँखें मिंचिया गयी है,
धुंधली सी तस्वीरों में महकती बगिया है।।
चंद सिक्कों की खनखनाहट मन लुभाती है,
लुढक जाता हूं अधमरा सा, जेब खाली है।।
सोचा था, खूब पढाऊंगा अपने लाडलों को,
शिक्षा जगत भी अर्थाजन, राजनितिक घुसपैठ से ग्रसित है।
ये जानलेवा तपन, दिल की अगन, बुझेगी न कभी,
ये भटकन, ये गिले-शिकवे खत्म भी होंगे कभी?