कविता

लातों के ये भूत हैं

लातों के ये भूत हैं मोदी! बातों से ना मान रहे
पीठ में छूरा घोंप के बैरी, अपना उल्लू साध रहे
मान-मुनौअल प्यार की बातें, अब न इनके संग करो
भुजा उखाड़ो आँखें फोड़ो, अब तो केवल जंग करो
सन् अड़तालीस वाली गलती, फिर से न वह हो पाए
जीती बाजी हार गये तुम, चूक कहीं ना हो जाए
आज मिला है अवसर तुमको, कैसे जीना सिखला दो
ये है छप्पन इंची सीना, दुनिया को तुम दिखला दो
अगर चूक गये ये अवसर, मौका फिर न पाओगे
लुटे हुए सिंदूरी सपने, कैसे वापस लाओगे?
सिसक रहा है पहलगाम, अब भी तो वादी काली है
कश्मीर बिना ना भारत की, तस्वीर बदलने वाली है।

— शरद सुनेरी

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