साथ
तानी बचपन से ही और बच्चों से अलग थी | नकारात्मक बातों का प्रभाव उस पर अधिक होता सकारात्मक बातें उसे प्रभावित नहीं करती | देखने में बहुत प्यारी चंचल, मोहक मुस्कान माँ की लाड़ली पापा की ख़ुशी थी | पिता ने तो उसे प्याऱ दुलार के नाम पर बिगाड़ने की मानो दीक्षा ले रखी थी | स्कूल में भी वह बेकार बच्चो का साथ ढूंढ ही लेती थी | माँ बेचारी दिनरात तानी के लिए सोंचती और प्रयास करती पर बेटी को माँ की कहानियां और बातें रास नहीं आती |
समय बीतता गया तानी 11साल की हो गयी | कक्षा में पिछड़े रहने के कारण उसका कोई भी सच्चा दोस्त नहीं था, पर किताबों का साथ अब भी उसे अच्छा नहीं लगता था | माँ अथक परिश्रम करती पर सफलता हाथ नहीं लग रही थी | बेटी की चिंता क्या होती है यह एक बेटी की माँ ही समझ सकती है|
“करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान |
रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान ||”
वह बड़बड़ाती हुई काम करती जाती है की,यह तथ्य मिथ्या तो नहीं हो सकता | एक दिन मेरा परिश्रम सफल जरूर होगा, फिर विश्वास और आस के दीपक का साथ लेकर निरंतर वह अपने कर्म पथ पर चलती बढ़ती रही | अंततोगत्वा तानी को समझ आ जाता है कि,माँ क्यों उसे डाटती है क्यों समझती है | वह अपनी हर बुरी आदत को छोड़ देती है |अच्छी संगत का महत्त्व वह जांन चुकी थी |
उसमे दिन ब दिन सकारात्मक बदलाव आते जा रहे थे | मानो कुंदन तप कर सोना बन गया था | पुस्तकों के साथ ने न केवल उसे ज्ञान,सम्मान और अच्छी नौकरी दी बल्कि जीवन में अच्छे मित्रों का साथ भी दिया | अच्छा साथ ही अच्छा विकास देता है |
— मंजूषा श्रीवास्तव ” मृदुल “
लखनऊ