कविता

आतंकवाद को खत्म करना होगा

सफाया करना होगा हमें डर के सांये का,
वर्षों से उत्पाद मचा रहे कालकूट पायें का,
अस्त्र-शस्त्रों को धुआंधार चलाना ही होगा,
दुश्मन को जड़ से उखाड़ गिराना ही होगा ।

रक्त रंजित कर रहे ये बार-बार वसुधा को,
बेहद कलंकित कर रहे हैं नित मानवता को,
खूंखार राक्षसों को अब खत्म करना ही होगा,
आतंकवादियों के विरुद्ध एक हो लड़ना ही होगा ।

ये भयावह लड़ाई धर्म विरोधियों की नहीं हैं,
ये अनाचारी अघाती मंसूबों के ख़िलाफ़ है,
दुष्ट कृत्यों को हमेशा के लिए रोकना ही होगा,
हमलों का तगड़ा करार ज़वाब देना ही होगा ।

असहाय पीड़ा भूल हम बस माफ़ करते जाते,
ये छलिए इसी बात का ही भरपूर लाभ उठाते,
झूठे दरिंदों को नेस्तनाबूद अब करना ही होगा,
इनकी नसलों को पूर्ण रूप राख करना ही होगा ।

भारत माता का रखेंगे देशवासी ऊंचा मान,
बहुत हो चुका वर्षों से अशेष भारी नुकसान,
धोखेबाजों को गिरोह सहीत खदेड़ना ही होगा,
वीरों के बलिदानों का क़र्ज़ चुकाना ही होगा ।

वीर लहुलुहान हो रहें हैं अपनों के खातिर,
दुश्मन हैं पंगु मगर कुटिल, झूठा, शातिर,
पराक्रम, शौर्य, साहस हमें दिखाना ही होगा,
इन बेरहमों को मौत के घाट उतारना ही होगा ।

कुत्ते की पूंछ टेढ़ी जमके करनी होगी पिटाई,
मत भूलों आज की नहीं हैं ये कोई नई लड़ाई,
हमें आतंकवाद को अब खत्म करना ही होगा,
शांति “आनंद” जन जीवन में भरना ही होगा ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु

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