कहानी

पूर्व जन्म का संबंध

कार गांव की तंग पहाड़ी रास्ते से गुजर रही थी। हरे भरे पेड़ों की ठंडी छाया में मौसम सुहावना लग रहा था तिस पर खेतों से मिट्टी की सौंधी खुशबू मनको आनंदित कर रही थी। निशांत अपने सपरिवार वापस शहर की ओर धीरे धीरे कार चलाए जा रहा था। नैसर्गिक सौंदर्य में दूर कहीं कोयल की मीठी आवाज कानों में रस घोल रही थी। मन कर रहा था कहीं खुले में थोड़ी देर बैठ कर आनंद लिया जाए। बस फिर क्या था एक ढाबे के पास कार खड़ी कर दी। बच्चे उछल कल कार के बाहर इधर उधर का नजारा देखने लग पड़े। निशा के चेहरे पर थकान के कोई भाव नहीं थे–बोली निशांत – “जी चाहता है यहीं एक घर बना कर बस जाएं। सुंदर ऊंचे पहाड़ आसमां में उड़ते बादलों के गुच्छे, लहर दर लहर बहती पवन, देवदार के घनें पेड़, कल कल करते बहते नाले। यहाॅं पहाड़ के लोग भी कितने किस्मत वाले हैं जिन्हें भगवान ने जन्नत यहीं पर दे दी है। काश हम भी यहीं पैदा हुए होते?”
ढाबे से कुछ खाने का सामान ले कर बच्चों के साथ जमीन पर बैठ कर खानें लग पड़े। तभी एक मरियल सा कुत्ते का बच्चा उन के पास आ कर बैठ गया। निशांत पिल्ले को अपने बूट की नोक से दूर धकेलने लगा था। पता नहीं उस पिल्ले की आंखों में कौन सी मासूमियत थी वह ऐसा नहीं कर पाया। पिल्ला बच्चों के पास आ कर बैठ गया। बच्चों ने उसे खाना खिलाया प्यार किया फिर क्या था बच्चों के साथ पिल्ला भी खेलने लग पड़ा। इतना घुल-मिल गया जैसे इन का पाला पोसा हो।
बच्चे एक साथ बोल पड़े -“पापा इसे हम नहीं छोड़ेंगे यह हमारे साथ ही चलेगा। ” निशा ने बच्चों को मनाते हुए कहा– “बेटा हम कहीं से और ला कर दे देंगे इसे छोड़िये, -चलो गाड़ी में बैठो। “
निशांत के आगे बच्चों का हठ मनाने पर भी जब नहीं बना तो मन ही मन हार गया। अपने बच्चों का पिल्ले के प्रति इतना स्नेह देख कर स्तब्ध रह गया था। वह असमंजस में था आखिर कहाॅं से आ टपका यह पिल्ला। बार बार समझाने पर भी बच्चे नहीं माने तो मजबूरन पिल्ले को साथ ही डिग्गी में बिठा कर लाना पड़ा।
आज रोबिन पिल्ला नहीं, बड़ा हो गया था। सुंदर नटखट तेज तर्रार। रेशम से सुनहरे बाल। गोल गोल आंखें बड़े प्यार से पंजा उठा कर‌ स्नेह को प्रदर्शित करता। अंदाज में भौंकना बच्चों से उछलना कूदना खिलौनों से खेलना। रोबिन के बिना घर सूना सूना सा लगता जब कभी वह चैन से सो जाता। निशा रोबिन को हर रोज नहलाती। बच्चे स्कूल से आते जाते देर तक उस के साथ खेलते। शाम को रोबिन भी सैर करने साथ जाया करता। उस के गले में लाल रंग का पट्टा उस में लोहे की चैन बांध रखी थी। कभी चैन बच्चों के हाथ रहती कभी निशा के हाथ।
वफादार बन चुका था रोबिन। हर बात सुनता मानता जैसे घर का ही सदस्य हो। सच में रोबिन‌ हर किसी को बच्चों की तरह ही प्यारा बन गया था। घर में बिल्ली चिड़िया तक नहीं आ सकती थी। अपने बरादरी के कुत्तों से ढेर सारी दुश्मनी थी। देखते ही संगल खींच खींच कर भौंकता। किसी की भी हिम्मत नहीं होती निशांत के घर बिना कहे आ सके। रोबिन का रोबीला चेहरा ही ऐसा था।
रोबिन धीरे धीरे सभी रिश्तेदारों, आस पड़ोस के लोगों से परिचित हो गया था। खुला भी छोड़ दें तो भी किसी को काटता नहीं बस अपनी भावनाएं व्यक्त करने को भौंकता। उस की निगाहें हमेशा अपने मालिक, बच्चों और निशा पर रहती।
समय पर खाना पीना सोना उस की दिनचर्या थी। रात भर जागना घर की निगरानी करना उस का धर्म था। बच्चे जब भी स्कूल से आते उन से लिपटना उछलना कूदना उसे अच्छा लगता था।
निशा की हर मन की भावना रोबिन समझ लेता था। बात ऐसे मानता जैसे उस का ही अपना हो। कोई पूर्व जन्म का ही संबंध था।
निशांत रोबिन का पुरा ख्याल रखता था। उस के लिए तरह तरह के खिलौने और कपड़े खरीद कर लाता। बीमार पड़ने पर दवाई देता।
यहां तक कहीं भी जाता बच्चों के साथ रोबिन भी साथ ही होता। रोबिन हर बात समझता कुछ चाहिये तो वस्त्र खींच कर अपनी इच्छा व्यक्त करता। अब तो रोबिन के बिना घर में किसी का भी दिल नहीं लगता था।
एक दिन निशांत शाम को ऑफिस से घर लौटा मेन गेट के अंदर पहले की तरह कार खड़ी कर के जब बरामदे में आया तो रोबिन नजर नहीं आया। निशांत ने सोचा शायद रोबिन बच्चों के साथ कमरे के अंदर खेल रहा होगा। जब भी निशांत शाम को घर लौटता रोबिन गेट पर पहले से ही खड़ा मिलता था। निशांत हैरान होता था आखिर इसे मेरे आने का पता कैसे चल जाता था।
परन्तु आज ऐसा नहीं हुआ।
“रोबिन —-!”-
निशांत ने आवाज दी।
निशा बाहर आई उस के चेहरे का रंग उखड़ा हुआ था। बच्चे शांत थे। एक खामोशी सब के चेहरे पर थी।
बोली—“दोपहर से ही रोबिन लेटा हुआ है न पानी पी रहा है न खाना खा रहा है। पता नहीं इसे क्या हो गया है। इसे किसी डॉक्टर के पास ले चलो। “
निशांत रोबिन के पास बैठ कर उस के बाल सहलाने लगा।
प्यार से पुचकारने लगा- रोबिन सिर्फ अपनी पूंछ ही हिला पाया था। बच्चों की आंखों में आंसू थे। सच में रोबिन भी रो रहा था।
निशांत ने रोबिन को गोद में उठाया और बोला–“निशा आप बच्चों का ख्याल रखना में डॉक्टर से चैक अप करवा के ले आता हूॅं। “
दोनों बच्चे दुखी मन से पापा के पीछे पीछे निशा के साथ कार तक आ गये।
रोबिन को जैसे ही कार में डाला पल्लवी नेही जोर जोर से रोने लग पड़ी –“नहीं पापा हम रोबिन के बिना नहीं रह पाएंगी हम भी साथ चलेंगी। “
निशा की भी आंखें भर आईं थी। बड़े प्यार से बच्चों को समझा कर रोबिन से अलग कर पाई थी।
रोबिन सभी की बातें सुन रहा था बोल नहीं सकता था। उस के लिए बच्चों से बिछुड़ना दुखदायी लग रहा था। पर करें क्या?
“निशांत जी इसे तो बहुत तेज बुखार है। आप चिंता मत कीजिए। हम इसे इंजेक्शन लगा देते हैं। आप को थोड़ी देर रुकना पड़ेगा जब तक बुखार उतर नहीं जाता। रोबिन यहीं रहेगा। ” डॉक्टर ने धैर्य बंधाते हुए निशांत को कहा फिर
अंदर कमरे में इंजेक्शन लगाने की तैयारी करने लग पड़ा।
तभी निशांत का फौन बज उठा। निशा पूछ रही – अब क्या हाल है रोबिन का?” – आवाज में घबराहट थी।
“बुखार तेज है कह रहे इंजेक्शन लगेगा थोड़ी देर के बाद हम आ जाएंगे। ” निशांत ने इतना कह कर फौन काट दिया था।
घर में निशा ने खाना बना रखा था। बच्चों को खाना खाने को कहा तो वह टाल मटोल करने लगे-“जब तक रोबिन ठीक हो कर घर नहीं आता हम खाना नहीं खाएंगे मम्मा। “बस यही रट बच्चे लगाए हुए थे।
उधर निशांत रोबिन को गोद में लिए बेटा था। बार बार उस की पीठ पर हाथ फेर रहा था। मन ही मन जैसे ढांढस बंधाते कह रहा हो सब ठीक हो जाएगा
डॉक्टर नें जैसे ही इंजेक्शन लगाया रोबिन छटपटाया। दर्द से–रोने लगा था हूॅं –हूॅं करने लगा। वह घबरा गया था। डॉक्टर की ओर घूर कर देखे जा रहा था। निशांत ने जकड़ कर रोबिन पकड़ रखा था। इंजेक्शन वाली जगह पर हाथ से धीरे धीरे मसल भी रहा था।
“अभी एक इंजेश्कन और लगेगा। इसे थोड़ा रिलेक्स होने दो। “
इतना कह कर डॉक्टर अपने कमरे में चले गये। निशांत ने रोबिन ढिला छोड़ दिया। रोबिन इधर उधर बाहर जलती बल्ब की रोशनी देख रहा था।
अचानक रोबिन के दिमाग में पता नहीं क्या आया। निशांत की तरफ एक शून्य दृष्टि पात किया फिर उछल कर तेज गति से बाहर सड़क की ओर भाग गया। निशांत रोबिन के पीछे दूर तक भागा। परन्तु रोबिन का कोई भी पता न चला। सारी जगह छान मारी रात के अंधेरे मैं रोबिन गायब हो चुका था।
डॉक्टर हाथ में लिए इंजेक्शन ले कर जब बाहर आया निशांत और रोबिन को न पा कर सोच में पड़ गया आखिर वो कहाॅं गये?तभी निशांत हांफता हुआ डाक्टर के पास पहुॅंचा।
“आप का कुत्ता कहाॅं चला गया। ” डॉक्टर ने पूछा।
“अभी अभी मेरी गोद से उछल कर भाग गया पता नहीं कहाॅं चला गया। ” निशांत ने विस्मय नजरों से कहा।
“हो सकता है घर भाग गया हो। आप उसे घर में देखें, उसे ले कर आ आओ। दूसरा इंजेक्शन भी जरूरी है। ” डॉक्टर ने हिदायत देते हुए कहा था।
थक्का मांदा निशांत जैसे घर पहुॅंचा। कार की आवाज सुन कर पल्लवी नेही निशा के साथ बाहर गेट तक आ ग‌ई। निशांत को अकेला देख पूछने लगी—“रोबिन कहाॅं है, , !”
“हां !हां !पापा रोबिन–? “दोनों बच्चियां पूछने लगी।
सारी बात सुना कर निशांत बच्चों के सिर पर हाथ फेर कर दुखी मन से यही कह पाया–“बेटा मैंने सोचा रोबिन घर आ गया होगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ। पता नहीं बेचारा रात कहाॅं होगा कैसा होगा शायद सुबह तक आ जाए। “
किसी ने भी रात खाना नहीं खाया। पल्लवी और नेही पूरी रात सो नहीं सकी बाहर नजरें गड़ाए देखती रही रोबिन अब आया के अब।
कुछ दिनों बाद घर का माहोल सामान्य हुआ। बच्चियां स्कूल जाने लगी। नेहा रोबिन की राह निहारती रहती। उसे लगता जैसे उस से किसी ने मन का सुकून छीन लिया हो। हर रोज रोबिन के बर्तन धो कर खाना डाल कर रखती। मन ही मन पुकारती जैसे कह रही हो रोबिन आ बेटा खा ले।
निशांत बच्चों के मन से बड़ी मुश्किल से रोबिन का नाम भुलाने में कामयाब हुआ था। परन्तु न जाने क्यों उन्हें रोबिन फिर भी याद आ ही जाता था। पल भर की उदासी निशांत को दहला के रख देती थी। निशांत को पक्का यकीन हो गया था। रोबिन एक फरिश्ता था जो मुझ से विदा हो कर कहीं लोप हो गया है। उसका मन मान गया था रोबिन इतने दिन कहाॅं बच सकता है शायद कहीं मर गया होगा।
एक दिन गेट के बाहर निशांत टहलने को सुबह सुबह निकला एक प्यारा सा छोटा पिल्ला वहीं गेट के पास मिल गया। रोबिन जैसी आंखें रोबिन जैसे बाल। वह टुकर टुकर करता हुआ निशांत की ओर देख कर पैरों में लोटने लगा। निशांत स्तब्ध सा उस पिल्ले को निहारने लगा।
अगले क्षण उसे उठा कर अपने घर ले आया। छोटा सा बच्चा कोई‌ हफ्ते भर का होगा—“निशा ओ निशा!” निशांत ने आवाज दी।
निशा बाहर निशांत के पास आ ग‌ई– निशांत के हाथ पिल्ला देख कर पूछ बैठी–“यह क्या?”
“हू-ब-हू रोबिन जैसा निशा। आओ इसे पल्लवी नेही को दिखाते हैं। “
बच्चे भी भाग कर वहीं पहुॅंच गये थे। पिल्ले को पा कर मन खुशी से झूम उठा था।
पापा पापा रोबिन मिल गया अब इसे हम नहीं जानें देंगे।
बच्चे पिल्ले के साथ खेलने लग पड़े थे। निशा निशांत के कंधे पर हाथ रख कर बोली–“निशांत मानो रोबिन की आत्मा इस पिल्ले में वापिस लोट हमारे घर आ गई हो। बिल्कुल रोबिन सा लग रहा है। आप यकीन कीजिए रोबिन का पूर्व जन्म का कोई हम से रिश्ता है तभी तो पुनः हमारे पास लौट आया है”।
दिन प्रति दिन रोबिन बड़ा होने लगा। माहोल पहले की तरह सामान्य हो चला। रोबिन के भौंकने की आवाजें पहले जैसे फिर से घर में गूंजने लगी। जैसे रोबिन मरा नहीं अभी जिंदा है।
निशा के मन में बार बार यही प्रश्न उठता। शायद रोबिन से पूर्व जन्म का संबंध था तभी तो लौट के आया फिर से हमारे पास।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995

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