युद्ध में अच्छा बुरा नहीं दिखता
गीदड़ की जब मौत है आती
उसको शहर की ओर है भगाती
खून से रंगे है जिन आतंकियों के हाथ
चैन की नींद उनको भी कहाँ आ पाती
निरीह लोगों का करके संहार
मज़हब का नाम लेकर रहे थे मार
कौन सा मजहब सिखाता है ऐसा
बेकसूर लोगों पर करो तुम अत्याचार
आकाओं की सोचने की शक्ति रही नहीं मति गई है मारी
बुद्धि इनकी हर ली आतंकबादियों ने सारी
युद्ध तो युद्ध है लेता है किसी की भी जान
मज़हब नहीं देखती मिसाइल सबकी आती है बारी
युद्ध में अच्छा बुरा नहीं दिखता
न ही जीत कर कोई बन जाता है महान
बलि चढ़ जाती है बेकसूर प्राणियों की
सैनिक ही नहीं मरते तबाह हो जाता है इंसान
— रवींद्र कुमार शर्मा