कविता

अपनों ने दुख-दर्द दिया

जिसे अपना कह कर अपनाया था,
हर राज जिसे मैंने अपना समझाया था,
जिसके संग हंसी के पल बांटे थे मैंने,
जिसे अपनेपन के दीप जलाए थे हमने।

वो ही दो पल में अजनबी बन गई,
बातों में मीठी, पर नज़रें बदल गई,
जिसके लिए हर दर्द छुपा लिया मैंने,
उसने ही दिल को छलनी कर दिया मेरा।

न रिश्ता खून का था, न कोई नाम था,
फिर भी बाँध लिया उसे रूह के संग थाम,
पर जब ज़रूरत थी एक साथ की जब,
उसने छोड़ दिया बिना कोई बात की मुझे।

क्यों अपनों से ही घाव गहरे मिलते हैं?
क्यों विश्वास के रिश्ते पहले सिलते हैं?
अब सवालों में ही उलझा हूं मैं जिंदगी में,
क्या अपनों का मतलब यही होता है कहीं?

फिर भी दुआ है उसके लिए दिल से ,
खुश रहे वो दूर ही सही इस दिल से,
क्योंकि जो रिश्ते दिल से बनते हैं अपने,
वो बदले नहीं जा सकते मिल के कभी।

— रूपेश कुमार

रूपेश कुमार

भौतिक विज्ञान छात्र एव युवा साहित्यकार जन्म - 10/05/1991 शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी , इसाई धर्म(डीपलोमा) , ए.डी.सी.ए (कम्युटर),बी.एड(फिजिकल साइंस) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! प्रकाशित पुस्तक ~ *"मेरी कलम रो रही है", "कैसें बताऊँ तुझे", "मेरा भी आसमान नीला होगा", "मैं सड़क का खिलाड़ी हूँ" *(एकल संग्रह) एव अनेकों साझा संग्रह, एक अंग्रेजी मे ! विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओ मे सैकड़ो से अधिक कविता,कहानी,गजल प्रकाशित ! राष्ट्रीय साहित्यिक संस्थानों से सैकड़ो से अधिक सम्मान प्राप्त ! सदस्य ~ भारतीय ज्ञानपीठ (आजीवन सदस्य) पता ~ ग्राम ~ चैनपुर  पोस्ट -चैनपुर, जिला - सीवान  पिन - 841203 (बिहार) What apps ~ 9934963293 E-mail - - [email protected]

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