गीत/नवगीत

आज परिवार दिवस है

वह दौर पुराना बचपन का, याद आज भी आता है,
छोटे घर संयुक्त परिवारों, याद आज भी आता है।
गर्मी की शामों को, छत पर पानी छिड़का करते,
नील गगन की चादर ताने, याद आज भी आता है।
दादा दादी, ताई चाची, सब मिल जुल कर रहते थे,
शाम ढले छत पर बिस्तर, याद आज भी आता है।
रोज नये कहानी किस्से, और चाँद सितारों की बातें,
एक था राजा एक थी रानी, याद आज भी आता है।
सप्त ऋषि नभ मंडल होते, ध्रुव तारा होता उत्तर में,
दादा का हमको समझाना, याद आज भी आता है।
होती थी संस्कार की बातें, फिर बड़ों के पैर दबाते,
आशीष हमें मिलती थी ढेरों, याद आज भी आता है।
शीतल मन्द समीर बहती, कभी कभी गर्मी भी रहती,
दोपहरी में पंखे का झलना, याद आज भी आता है।
सुबह सवेरे दादी उठती, नभ में देख समय तकती,
भोर हो गयी दादी का कहना, याद आज भी आता है।
आस पास में जो भी रहते, सब छत पर मिल जाते थे,
सबके सुख दुःख की वो बातें, याद आज भी आता है।
बच्चे खेलें देर रात तक, ऊँच नीच और छुपम छिपाई,
छिन गया वो बचपन बच्चों का, याद आज भी आता है।

— डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन

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