आत्मकथा

पहले आप ये डायरी के अवराक़ पढ़े फिर इस पर कुछ बातें करेंगे दिलसे।

इसको पहले तो यहां कभी नहीं देखा था, मेरी इस डायरी के अवराक़ में अगर आप अपने आप को तलाश करोगे तो आपको डायरी मेरी नहीं आपकी अपनी दास्तान लगेगी। क्योंकि इश्क़ प्यार और मोहब्बत क्या है? कोई अलग तो नहीं प्यार तो प्यार है और उसका अंजाम कभी खुशी है तो कभी ग़म है। हालत इंसान के बस में तो नहीं होते। लेकिन ज़्यादातर दिल जो प्यार कर बैठते हैं,बाद में टूट कर बिखर जाते हैं। मेरा प्यार भी अधूरा रहा लेकिन सच तो ये है कि यह है कि प्यार कभी किसी भी वक्त में, न वक्त का मोहताज रहा न ऊंच नीच का न उम्र का न कभी दिन और रात उसको रोक पाए हैं।तवरीख़ इस बात की शाहिद रही है,लेकिन इस मुआमले में मेरा मुकद्दर बहुत ही ख़राब निकला।कई राते कई दिन ख्वाबों के महल बनने में शर्फ़ कर डाले मगर जब ये ख़्वाब हक़ीक़त के संगरेज़ों से टकराए तो मैं अपना वजूद भी संभाल नहीं पाया लोगों की ज़ुबान ने मुझे पागल करार दे डाला।

रफ़्ता रफ़्ता ज़ख़्म धीरे धीरे भर तो गये लेकिन वक्त बे वक्त मुहब्बत के निशान आज भी उन लम्हों को याद करके जो उसकी कुर्बतो मैं गुज़रे मुझे माज़ी में खींच कर ले जाते हैं। और मेरी याददाश्त मुझसे तकरार करके वापस वहां लाकर खड़ा कर देती है,जहां तुमको मेरी इन आंखों ने पहली बार देखा था। उफ़ मेरे अल्लाह पहली नज़र भी आपकी किस बाला की थी।

वो मुहब्बत की घड़ी वो लम्हे दिल को सुकून भी देते हैं और दर्द भी। हाय री मेरी क़िस्मत। वोदिन सर्दियों के ही तो थे कि बड़ी तेज़ सर्द हवाएं वातावरण में इठलाती हुई आवारा की तरह फिर रही थीं। उन दिनों मैं यहां के एक मुक़ामी स्कूल में टीचर हुआ करता था।स्कूल की छुट्टी का वक्त हो रहा था, मैंने देखा की एक खूबसूरत सी लड़की खिड़की के बाहर से अंदर की तरफ़ झांक रही है, उसको देखने की मेरी ख़्वाहिश भी हुई, मैं भी उसको देखना चाह रहा था कि ये कौन है, इसको पहले तो यहां कभी नहीं देखा था, फि़र उसने दुबारा कोशिश की तो मैंने भी उसको देखा उसकी नज़रें मुझसे टकराई और वो शरमाते हुए मेरी आंखों में समा गई। उसी टाइम मेरे साथ स्कूल में पढ़ाने ने वाले टीचर और उनकी अहलिया जो दूसरे स्कूल में टीचर थी, वो स्कूल की तरफ़ आते दिखाई दिए। उनसे मैंने पूछना मुनासिब भी नहीं समझा ।स्कूल की छुट्टी का वक्त हो हो गाया था। मैंने देखा की मेरे स्कूल के बच्चे बच्चियां भी अपना बस्ता संभालने लगे और वो भी इन्हीं बच्चों के साथ वहीं खड़ी रह कर शायद उनके साथ ही जाना चाह रही थी।मैंने सोचा कि शायद किसी के घर बाहर से आई हुईं कोई मेहमान होगी। बात आई गई हो गई। मेने ज़्यादा सोचना मुनासिब नहीं समझा। दूसरे दिन उसी टाइम यानी छुट्टी के वक्त वो फि़र नज़र आई।मुझसे रहा न गया मैने मेरे साथी टीचर से पूछ ही लिया उसके मुत्तालिक़।

तो मालूम हुआ खान साहब ने बताया कि हमारी शरीके़ हयात यानी हमारी बीवी की बहन है। यही हिंदी गवर्नमेंट मिडिल स्कूल में दाखिला दिलवाया है, बहुत ज़हीन है ,हमारे शहर से आई है। फ़िर कहने लगे की मैं इसके मुत्तालिक़ ही सोच रहा था। तुमने ज़िक्र निकाला तो मैं तुमसे कहना चाहूंगा कि चूंकि तुम्हारा मैथ्स और साइंस बहुत ही बढ़िया है तो क्यों न तुम उसको पढ़ाओ, मैं ज़रा सोच में पड़ गया, मैंने पहले न नुकुर कि फ़िर उन्होने बार बार इसरार किया,कहा कि थोड़ा वक़्त तो निकाल ही सकते हो हमारे लिए। फ़िर मैंने भी वक्त की नज़ाकत को गनीमत समझा ,खामोश रहा फिर मैं ने हां करदी।

बाक़ी इंशा अल्लाह फिर कभी आगे की दास्तान,

— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह सहज़

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- [email protected] , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,

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