मालदार दूल्हा ढूंढने वालो खुद से भी सवाल करो!
दहेज की बातें करते हो,
सड़कों पर मोमबत्तियाँ जलाते हो,
पर बेटी की शादी में फिर भी,
बैंक बैलेंस पर निगाहें गड़ाते हो।
थूक देते हो दहेज वालों को,
सोशल मीडिया पर भाषण चलाते हो,
पर जब अपनी बिटिया की बारी आती है,
बातों में बड़े-बड़े महल सजाते हो।
रिश्ते तोड़ते हो चाय की प्याली में,
गाड़ियों के ब्रांड पर सौदे जमाते हो,
विवाह नहीं, मोल-भाव की मंडी में,
शगुन की जगह चेक बुक लहराते हो।
प्यार की बातें करते हो खूब,
फिर भी ‘सुरक्षित भविष्य’ की फाइल बनाते हो,
बेटी की खुशियों का क्या?
जब भावनाएँ भी पैसों में आजमाते हो।
दहेज लेना और देना, दोनों अपराध है,
फिर भी परंपराओं की ओट में,
अपने हिस्से का गुनाह छुपाते हो।
बेटी बोझ नहीं, आशीर्वाद है,
इतना कहते हो, फिर भी,
ससुराल में भेजने से पहले,
खुद ही लम्बी लिस्ट बनाते हो।
इकतर्फा मत बवाल करो,
अगर बदलाव चाहिए तो खुद से शुरुआत करो,
रिश्तों को दिल से सजाओ,
दहेज के इस अंधकार को मिटाओ,
बेटी की खुशियों का असली अर्थ समझाओ।
मालदार दूल्हा ढूंढने वालों,
खुद से भी सवाल करो!
दहेज़ लेना और देना दोनों अपराध है
एकतरफा मत अब बवाल करो!!
— डॉ. सत्यवान सौरभ