डिफॉल्ट

मेरा प्रस्ताव

आज रात यमराज जब मुझसे मिलने आया
तो मैंने उससे चित्रगुप्त जी के नाम एक पत्र लिखवाया,
पत्र का मजमून उसकी समझ में नहीं आया।
वो कहने लगा क्या ऐसा हो सकता है प्रभु?
मैंने कहा क्यों नहीं हो सकता?
जो धरती पर हो सकता है
वहाँ क्यों नहीं हो सकता है?
प्यार -सम्मान, जोर-जबरदस्ती, सिफारिश, धमकी
या रिश्वत से कहीं भी, कुछ भी हो सकता है?
इसी को जानने के लिए तो मैं ऐसा कर रहा हूँ,
सच मान मैं खुद को ही आगे रखकर
यह प्रयोग करना चाह रहा हूँ,
ईमानदारी से कहूँ तो मैं सचमुच ही ऐसा चाहता हूँ।
लेकिन प्रभु! ऐसा हो गया, तो आपको मरना पड़ेगा,
इससे दुनिया को क्या फर्क पड़ेगा,
जब आपका नामोनिशान मिट जायेगा।
देख भाई! मैं तो महज एक प्रयोग कर रहा हूँ
दुनिया को एक नजीर देने का प्रयास कर रहा हूँ,
असमय होने वाले किसी की मौत को टालने का
एक अनिश्चित प्रयोग कर रहा हूँ।
वैसे तू ही बता क्या मैं कोई अपराध कर रहा हूँ?
चित्रगुप्त जी को भी बस थोड़ा हेर-फेर ही तो करना है,
मेरी शेष उम्र किसी के हिस्से में जोड़ देना
साथ ही कर्मों के बही खाते में दोनों के पाप पुण्य की सिर्फ थोड़ी अदला बदली कर देना है।
यदि ऐसा हो जायेगा, तो सच मान
जाने कितनों का समय, सौभाग्य बदल जायेगा,
किसी अपने को खोकर भी किसी का भाग्य खुल जाएगा
जब परिवार में छाने वाला घनघोर अंधेरा मिट जायेगा,
यदि यह प्रयोग सफल हो जायेगा।
मुझे पता है मेरा ये प्रस्ताव तुझे तो क्या
चित्रगुप्त जी को भी नहीं भायेगा,
मगर एक कोशिश करने भर से
कौन सा भूचाल आ जायेगा?
और मेरी यमलोक यात्रा का वारंट
तत्काल तेरे हाथों में आ जाएगा?
जो मेरा नाम इतिहास बन अमर जायेगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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