ग़ज़ल
पहले झूठे ख्वाब संजोती रहती है
फिर अपनी तकदीर पे रोती रहती है
फ़ूलों की चाहत है तो फिर क्यों दुनिया
जब देखो तब काँटे बोती रहती है
भूल गया हूँ जब मैं पिछली सब बातें
जलन क्यों मेरे दिल में होती रहती है
देते नहीं सहारा वही बुढ़ापे में
बोझ जवानी जिनका ढोती रहती है
कलम मेरी लफ़्ज़ों में बड़ी बेबाकी से
सारे जहां का दर्द पिरोती रहती है
— भरत मल्होत्रा