कविता

तन्हाई

ढलने लगी शाम
मैं हो गया गुमनाम
किसको सुनाऊं मन की
खबर नहीं अब तन की
नीरस दिन, गुमसुम रातें
यादों की बस बातें
तन्हाई बनी जीवन साथी
आंखें नीर बरसातीं
हृदय का उल्लास खो गया
पहले वाला विश्वास खो गया
राग बसंती सब चले गये
गीत मनोहर सब भूल गये
अपनी ही परछाई डराती
रह- रहकर रुह कंपाती
हो गईं सब मुरादें पूरी
रही मन की प्यास अधूरी…

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111

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