तन्हाई
ढलने लगी शाम
मैं हो गया गुमनाम
किसको सुनाऊं मन की
खबर नहीं अब तन की
नीरस दिन, गुमसुम रातें
यादों की बस बातें
तन्हाई बनी जीवन साथी
आंखें नीर बरसातीं
हृदय का उल्लास खो गया
पहले वाला विश्वास खो गया
राग बसंती सब चले गये
गीत मनोहर सब भूल गये
अपनी ही परछाई डराती
रह- रहकर रुह कंपाती
हो गईं सब मुरादें पूरी
रही मन की प्यास अधूरी…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा