कविता

नारों में छुपी देशभक्ति

देशभक्ति होता हर नागरिक का गुण,
हर कोई हो नहीं सकता इसमें निपुण,
सैनिक ताउम्र अपनी जिम्मेदारी निभाता है,
वक्त आने पर अपनी जां भी लुटाता है,
इनका जज्बा चंद पैसों के लिए
जान गंवाने का दिखावा नहीं होता,
नेताओं के नारों के बीच छुपा हुआ
देशभक्ति का छलावा नहीं होता,
सैनिकों के भीतर भरा हुआ
वतनपरस्ती लबरेज होता है,
जज्बातों से खेलने वालों का
हृदय से अंतस निस्तेज होता है,
जब भी कोई देश के लिए शहीद होता है,
तो सतही तौर पर सारे लोगों में
उमड़ पड़ता है देशप्रेम का हिलोर,
परिवार वालों की आंसुओं के बीच
जुनूनीयत दिखाते जवां,बूढ़े,किशोर,
देशप्रेम के नारों के बीच
दब जाता है अपनों को खोने का दर्द,
बूढ़े मां बाप,बिलखते पत्नी-बच्चे को
छोड़ जाता है इकलौता कमाऊ मर्द,
तब उस घर की ओर आंख उठा
देखने की फुरसत नहीं रहती,
न नेताओं को,न सरकारों को,
और न ही नारों से धुत उन्मादी जन को,
तब काम नहीं आता उस परिवार का
नारों में छुपी हुई देशभक्ति।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

Leave a Reply