गीतिका/ग़ज़ल

अधूरा लगता है

तेरे बग़ैर ये दिल सुना-सुना सा लगता है,
हर एक लम्हा जैसे अधूरा अधूरा सा लगता है।

तेरी बातें हवा से पूछते हैं आजकल हम,
तेरा नाम भी अब हमें रुला देता है।

चाँदनी रातें भी अब जला देती हैं हमें,
कभी जो रोशनी थी, अब अँधेरा सा लगता है।

वो जो कहते थे कभी कि नहीं छोड़ेंगे हम,
आज उसी का साया भी पराया सा लगता है।

हमने तो अपनी जान भी दे दी थी तुझपे,
तू गयी तो जीना भी अब गुनाह सा लगता है।

— रूपेश कुमार

रूपेश कुमार

भौतिक विज्ञान छात्र एव युवा साहित्यकार जन्म - 10/05/1991 शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी , इसाई धर्म(डीपलोमा) , ए.डी.सी.ए (कम्युटर),बी.एड(फिजिकल साइंस) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! प्रकाशित पुस्तक ~ *"मेरी कलम रो रही है", "कैसें बताऊँ तुझे", "मेरा भी आसमान नीला होगा", "मैं सड़क का खिलाड़ी हूँ" *(एकल संग्रह) एव अनेकों साझा संग्रह, एक अंग्रेजी मे ! विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओ मे सैकड़ो से अधिक कविता,कहानी,गजल प्रकाशित ! राष्ट्रीय साहित्यिक संस्थानों से सैकड़ो से अधिक सम्मान प्राप्त ! सदस्य ~ भारतीय ज्ञानपीठ (आजीवन सदस्य) पता ~ ग्राम ~ चैनपुर  पोस्ट -चैनपुर, जिला - सीवान  पिन - 841203 (बिहार) What apps ~ 9934963293 E-mail - - [email protected]

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