प्रिया
वो शब्दों का नर्तन,
भावनाओं का स्पंदन,
मौन में छिपी पुकार,
और लहरों सा अनुगमन।
वो सर्द हवाओं की सरसराहट,
मन की गहराइयों में उलझन,
सच की मीठी कड़वाहट,
और कल्पनाओं का अडिग अनुशासन।
वो चुपके से आंखों में ठहर जाना,
बिन कहे दिल तक उतर जाना,
कभी जलते सूरज की आंच,
तो कभी चांदनी सा ठंडा एहसास।
वो जो शब्दों में बंध जाए तो काव्य,
और मन में बस जाए तो प्रिया।
— डॉ सत्यवान सौरभ