अच्छा! तुम ही हो!
अच्छा! तुम ही हो!
लेती रहती हो ,
औरों से मेरी ख़बर।
अच्छा ! तुम ही हो!
पूछती रहती हो
गैरों से मेरा घर है किधर।
अच्छा! तुम ही हो!
रखती हो ,
जो मुझ पर नज़र।
अच्छा ! तुम ही हो !
आती हो मेरे पीछे,
जाता हूंँ मैं जिधर।
अच्छा! तुम ही हो!
करती हो मुझसे प्यार,
पर ,कहने से डरती हो।
अच्छा ! तुम ही हो
कर दो प्रेम का इज़हार,
करता हूंँ मैं इकरार
तुम्हारे सिवा कोई नहीं है,
अच्छा है ! तुम ही तुम हो!
मैं भी करता हूँ स्नेह अपार।
— चेतना सिंह