मुक्तक/दोहा

कुछ दोहे

मांगे से कुछ न मिले,न भोजन न नीर।
करो तपस्या जतन से, चमकेगी तकदीर।।
सीधी सादी जिंदगी ,मीठे सच्चे बोल।
जाने क्या उनको हुआ, रहते हैं विष – घोल।।
सूनी सब पगडंडियां, सूने- सूने गांव।
सूनी अब दालान है जलते नहीं अलाव।।
मन में था विश्वास कि जीतूंगा इस बार।
धोखे में रखा उन्हें,लूट लिया संसार।।
थोड़ा सा नकदी मिला, बाकी गया उधार।
दुनिया की इस भीड़ में रिश्तों का व्यापार।।
बंटे और बिखरे बहुत सूझा नहीं उपाय।
आपस में मिलकर रहे खाये पिये अघाय।।
गांव घरों में न बची हरियाली की आस।
सांस – सांस जिन्दा रही होंठों की ये प्यास।।
ढाई आखर न पढ़े,मन का वो शैतान।
कबिरा को झूठा कहे, चलता सीना तान।।
बेल घृणा की बो रहे उन्मादी शैतान।
जनता को देते हुए नफ़रत का पैगाम।।
मंदिर मस्जिद के लिए हुए सियासी काज।
जनता के दिल पर करे वेद हमेशा राज।।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890

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