सामाजिक

बलड़ी की अमराई और वहां की यादों के प्रति झलकता प्रेम

हम सबके मन में अपने गांव बलड़ी की अमराई और वहां की यादों के प्रति गहरा प्रेम झलकता है। सचमुच, बचपन के वे दिन, आम के बाग, गांव की गलियां, और वहां की खुशबू—ये सब जीवन भर दिल में बसे रहेंगे।
इंदिरा सागर बांध के कारण गांव का डूब जाना एक बहुत बड़ी क्षति है, लेकिन वहां की अमराई की स्मृतियां आज भी मन को उसी जगह ले जाती हैं। वे आम के पेड़ों की छांव, गर्मियों की दोपहर, ठंडे पानी का स्वाद, और दोस्तों के साथ बिताए पल—ये सब यादें आज भी मन को सुकून देती हैं।
अमराई की स्मृतियां,पेड़ों की ठंडी छांव, दोपहर की चिलचिलाती धूप में अमराई की छांव में बैठना, मिट्टी की सोंधी खुशबू और आम के पत्तों की सरसराहट आज भी याद आती है। कैसे भूलें हमारे गांव का साप्ताहिक बाजार।
गांव के लोग, बच्चे, बुजुर्ग सब मिलकर अमराई में बैठते, बातें करते, ठंडा पानी पीते और हंसी-मजाक़ करते थे।आम के मौसम में अमराई की रौनकें ही अलग होती थी। तीज-त्योहारों पर वहां की चहल-पहल, झूले, गीत और उत्सव की यादें आज भी दिल को छू जाती हैं।
अमराई का हर पेड़, शाखाएं, हर कोना, बावड़ी , बमन पूरी आज भी स्मृतियों में ताज़ा है। वहां की हरियाली और शांति अपनेपन का अहसास देती है।
गांव भले ही अब डूब गया हो, लेकिन वहां की यादें, वहां का अपनापन, और अमराई की छांव आज भी हम सबके जीवन का हिस्सा हैं। ये स्मृतियां हमेशा दिल में बसी रहेंगी और आपको अपनी जड़ों से जोड़े रखेंगी।
“कुछ जगहें भले ही मिट जाएं, लेकिन उनसे जुड़ी यादें और अपनापन कभी नहीं मिटता।”
गांव की आमराई में दोपहर का समय बेहद खास होता है। तपती धूप में आम के घने पेड़ों की छांव ठंडक देती है। बच्चे और बुज़ुर्ग, सभी आम के पेड़ों के नीचे बैठकर ठंडा पानी पीते हैं, जिससे गर्मी का अहसास कम हो जाता है। गांव की पगडंडियों पर चरवाहे अपने जानवरों के झुंड के साथ नज़र आता थे।
चरवाहे भी हमारे गांव के जीवन का अभिन्न हिस्सा थे। वह अपने झुंड को चराने के लिए सुबह-सुबह निकलते थे,और दोपहर में किसी पेड़ की छांव में बैठकर आराम करते थे। चरवाहे न केवल जानवरों की देखभाल करता थे, बल्कि गांव के बच्चों को भी अपने अनुभव सुनाता थे। जानवरों के झुंड की घंटियों की आवाज गांव के वातावरण में एक अलग ही मिठास घोल देती थी।
गांव में तीज-त्योहारों का बड़ा महत्व होता है। होली, दिवाली, तीज, हरियाली तीज जैसे त्योहारों पर पूरा गांव एकजुट होकर उत्सव मनाता था। महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती थीं, और बच्चे खेलते हैं। त्योहारों के मौक़े पर आपसी सहयोग और भाईचारे की भावना और भी गहरी हो जाती ह
थी—लोग एक-दूसरे के घर मिठाई बांटते हैं, साथ मिलकर पूजा करते थे, और खुशियां साझा करते थे।
गांव में आपसी भाईचारा जीवन का आधार था। कोई भी काम अकेले नहीं होता—खेती, त्योहार, संकट या खुशी, सब कुछ मिलजुल कर किया जाता था। बुजु़र्गों की राय का सम्मान होता ह था। और गांव का हर व्यक्ति एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था ।
गांव, आमराई, चरवाहा और त्योहार—ये सब मिलकर भारतीय ग्रामीण जीवन की सुंदरता और सामूहिकता को दर्शाते हैं। ऐसा ही सुंदर मनमोहक था हम सबका प्यारा गांव बलड़ी,
भुजरिया उत्सव की परंपरा हमारे बलड़ी गांव में भी बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाई जाती थी। यहाँ के ग्रामीण सावन के महीने में मिट्टी की छोटी-छोटी टोकरी में गेहूं या जौ के दाने श्रद्धा के साथ बोते थे, जिन्हें भुजरिया कहते हैं। ये अंकुरित पौधे रक्षाबंधन के अगले दिन गांव की नदी, में विसर्जित किए जाते थे। इस दौरान महिलाएं पारंपरिक गीत गातीं थीं ।और पूरे गांव में भजन-कीर्तन की गूंज रहती थी, जिससे गांव में उत्सव की रौनक फैल जाती थीं।
गांव में भुजरिया पर्व आपसी मेलजोल, भाईचारे और पुराने मनमुटाव दूर करने का भी अवसर होता था। लोग एक-दूसरे को भुजरिया देकर गले मिलते हैं, जो गांव में प्रेम और सौहार्द्र की झलक दिखलाता था।
जो गांव के ग्रामीण जीवन में प्रकृति प्रेम, सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकता का जीवंत प्रतीक था। अमराई की यादें अमिट थीं अमिट रहेंगी,हमारी स्मृतियों में।

— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

पिता का नाम: अशफ़ाक़ अहमद शाह जन्मतिथि: 24 जून जन्मस्थान: ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा, मध्य प्रदेश कर्मभूमि: हरदा, मध्य प्रदेश स्थायी पता: मगरधा, जिला हरदा, पिन 461335 संपर्क: मोबाइल: 9993901625 ईमेल: dr.m.a.shaholo2@gmail.com शैक्षिक योग्यता एवं व्यवसाय शिक्षा,B.N.Y.S.बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस. बी.कॉम, एम.कॉम बी.एड. फार्मासिस्ट आयुर्वेद रत्न, सी.सी.एच. व्यवसाय: फार्मासिस्ट, भाषाई दक्षता एवं रुचियाँ भाषाएँ, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी रुचियाँ, गीत, ग़ज़ल एवं सामयिक लेखन अध्ययन एवं ज्ञानार्जन साहित्यिक परिवेश में रहना वालिद (पिता) से प्रेरित होकर ग़ज़ल लेखन पूर्व पद एवं सामाजिक योगदान, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल, मगरधा पूर्व प्रधान पाठक, उर्दू माध्यमिक शाला, बलड़ी ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, मगरधा साहित्यिक यात्रा लेखन का अनुभव: 30 वर्षों से निरंतर लेखन प्रकाशित रचनाएँ: 2000+ कविताएँ, ग़ज़लें, सामयिक लेख प्रकाशन, निरन्तर, द ग्राम टू डे, दी वूमंस एक्सप्रेस, एजुकेशनल समाचार पत्र (पटना), संस्कार धनी (जबलपुर),जबलपुर दर्पण, सुबह प्रकाश , दैनिक दोपहर,संस्कार न्यूज,नई रोशनी समाचार पत्र,परिवहन विशेष,समाचार पत्र, घटती घटना समाचार पत्र,कोल फील्ड मिरर (पश्चिम बंगाल), अनोख तीर (हरदा), दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद, नगर कथा साप्ताहिक (इटारसी) दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार, दैनिक जागरण, मंथन (बुरहानपुर), कोरकू देशम (टिमरनी) में स्थायी कॉलम अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित प्रकाशित पुस्तकें एवं साझा संग्रह साझा संग्रह (प्रमुख), मधुमालती, कोविड, काव्य ज्योति, जहाँ न पहुँचे रवि, दोहा ज्योति, गुलसितां, 21वीं सदी के 11 कवि, काव्य दर्पण, जहाँ न पहुँचे कवि (रवीना प्रकाशन) उर्विल, स्वर्णाभ, अमल तास, गुलमोहर, मेरी क़लम से, मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति, बेटियां, कोहिनूर, कविता बोलती है, हिंदी हैं हम, क़लम का कमाल, शब्द मेरे, तिरंगा ऊंचा रहे हमारा (मधुशाला प्रकाशन) अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा, तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी (जील इन फिक्स पब्लिकेशन) व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह: तुम भुलाये क्यों नहीं जाते तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें तेरा इंतज़ार आज भी है (नवीनतम) पाँच नए ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन सम्मान एवं पुरस्कार साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त पाठकों का स्नेह, साहित्यिक मंचों से मान्यता मुश्ताक़ अहमद शाह जी का साहित्यिक और सामाजिक योगदान न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के लिए गर्व का विषय है। आपकी लेखनी ने समाज को संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय मूल्यों से जोड़ा है। आपके द्वारा रचित ग़ज़लें और कविताएँ आज भी पाठकों के मन को छूती हैं और साहित्य को नई दिशा देती हैं।